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बात / बाबूराम शर्मा 'विभाकर'

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|रचनाकार=बाबूराम शर्मा 'विभाकर'
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<poem>प्यारी, अच्छी अथवा भौंडी,
तरह-तरह की होती बात।
कोई गोबर जैसी फूहड़,
और किसी की मोती बात।
मुन्नू-चुन्नू से लड़कर खुद-
रोता, उसकी रोती बात।
रेखा अंजू, शबनम हँसती,
उनकी होती हँसती बात।
सच्ची या झूठी हो कोई,
दिल में सबके बसती बात।
बातों का ही खाते जो भी,
उनकी कभी न भाती बात।
बेबी रुखसाना को देखो,
बन-बन बड़ी बनाती बात।
नानी जी की बात बड़ी है,
कभी खत्म ना होती बात।
जिसे सुनाते खुद सो जाएँ,
उसे कहेंगे सोती बात।
जिसको तुरत-फुरत कह देते,
वह मुँहफट कहलाती बात।
बना बतंगड़ किसी बात का,
वह भँगड़ा करवाती बात।
कोई मन को तीखी करती,
होती बड़ी कँटीली बात।
कोई माखन-मिसरी जैसी,
मीठी और रसीली बात।
‘मेली बात छुनो ताता दी’
‘मनु’ की हुई तोतली बात।
दाँत बिना फह-फह बाबा की,
देखो मधुर पोपली बात।
सोच-समझकर बोलें जिसको,
उसको कहते अक्ली बात।
हिचक-हिचक रुक-रुक जो बोले,
वह कहलाती हकली बात।
आँखों-आँखों में जो होती,
उसको कहते गूँगी बात।
मन में नहीं मधुरता हो तो,
वह तो होती रूखी बात।
दीवारों के कान लगे हैं-
चुप-चुप, चुप-चुप करना बात।
बात पचाना बड़ी बात है
सुनकर मन में धरना बात!
</poem>
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