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22:47, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभाकिरण जैन
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|संग्रह=
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<poem>माँ, क्या हो सकता है ऐसा
जादू वाला घर हो अपना,
जहाँ धूप हो उसी दिशा में
घर का दरवाजा हो अपना?
हो न अँधेरा, रहे उजाला
जहाँ बना हो अपना घर,
माँ, बतलाऊँ सच्ची-सच्ची
मुझे रात को लगता डर।
</poem>