Changes

अपना घर / प्रभाकिरण जैन

622 bytes added, 22:47, 6 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभाकिरण जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभाकिरण जैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>माँ, क्या हो सकता है ऐसा
जादू वाला घर हो अपना,
जहाँ धूप हो उसी दिशा में
घर का दरवाजा हो अपना?

हो न अँधेरा, रहे उजाला
जहाँ बना हो अपना घर,
माँ, बतलाऊँ सच्ची-सच्ची
मुझे रात को लगता डर।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits