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आ गया सूरज / कृष्ण कल्पित

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<poem>धूप का बस्ता उठाए आ गया सूरज,
बैल्ट किरणों की लगाए, आ गया सूरज!
भोर की बुश्शर्ट पहने
साँझ का निक्कर,
दोपहर में सो गया था
लॉन में थककर।
सर्दियों में हर किसी को भा गया सूरज!
हर सुबह रथ रोशनी का
साथ लाता है,
साँझ की बस में हमेशा
लौट जाता है।
दोस्तों को दोस्ती सिखला गया सूरज!
</poem>
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