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दादी का चश्मा / नवीन जैन

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<poem>मेरी दादी, बूढ़ी दादी
आँखें रखती चार,
दो आँखों को बंदर ले गया
चढ़ जा बैठा डार!

दादी ने जब ऊपर देखा
घूम गया संसार,
रोटी ले ले, केला ले ले-
दादी की मनुहार!

खीं-खीं, खीं-खीं,-बंदर बोले
सुने एक न चार,
दादी मोटा डंडा लाई
तू डंडे का यार।

हँसता-हँसता बोला मुन्ना-
मत करना इनकार,
दादी का चश्मा तू दे दे
बस्ता ले जा यार।

इस बस्ते से नाक में दम है
आज पड़ी फिर मार,
पढ़ने से छुट्टी दिलवा दे
दूंगा लड्डू चार।

-साभार: नंदन, मार्च 1987, 32
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