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सर्कस का शेर / सरला जैन

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<poem>भागा जब सर्कस का शेर
की उसने जंगल की सैर।
मिला उसे गीदड़ मुँहजोर
उसने शीघ्र मचाया शोर।
सुनो शहर से आया जोकर
रिंग मास्टर का यह नौकर।
रहा न अब यह वन का राजा,
चलो बजाएँ इसका बाजा।
सुनकर शेर बहुत शरमाया,
फिर सर्कस में वापस आया।

-साभार: हीरोज क्लब पत्रिका, इलाहाबाद
</poem>
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