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मेढक की खाज / कृष्ण शलभ

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<poem>मेढक बोला- ‘टर्रम-टूँ
जरा इधर तो आना तू,
खाज़ लगी मेरे सिर में
जरा देखना कितनी जूँ!’

कहा मेढकी ने इतरा-
‘चश्मा जाने कहाँ धरा,
बिन चश्मे के क्या देखूँ
कहाँ कहाँ है कितनी जूँ!’
</poem>
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