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मन में आग अधर हैं प्यासे चेहरों पर फिर भी मुस्कान / पृथ्वी पाल रैणा
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20:00, 9 अक्टूबर 2015
भ्रमित हुई बुद्धि, चेहरे पर चिपक गई मीठी मुस्कान
ख़ूब हुआ फिर खेल, जगत से इतने रिश्ते
बांधे
बांध लिए
छोडूं किसे निभाऊँ किसको बौराई नन्ही सी जान
द्विजेन्द्र 'द्विज'
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