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17:07, 11 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']]
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<poem>
बदलियाँ जाने किस दयार में हैं
लोग पानी के इंतज़ार में हैं
तुम मसीहा की सफ़<ref>पंक्ति</ref> में बैठे हो
हम दवाओं के इश्तिहार में हैं<ref>विज्ञापन</ref>
यूँ सुहागिन -सी हो गई आँखें
सुर्ख़ फूलों के अख़्तियार में हैं<ref>अधिकार, प्रभाव</ref>
सूखने तो लगी हैं दीवारें
अब चटख़ने के इंतिज़ार में हैं
शामियाना जला के छोड़ेंगे
जो उजालों के इन्तिज़ार में हैं
अगली पीढ़ी को जो बचाएगी
हम शहीदों की उस क़तार में हैं
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