1,071 bytes added,
15:48, 13 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलप्रिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>पिताश्री
तुमने क्यों
आकाशबेल की तरह
चढ़ा दिया था
शाल वृक्ष के कंधों पर?
मुझे सख्त जमीन चाहिए थी
अब तक और अब तक
चढ़ती रही हूं
पीपल के तनों पर
नीम-सी उगी हुई मैं
फैलती रही है तुम्हारी बेल
जबकि उलझाता रहा यह सवाल
कि मेरी जड़ें कहां हैं?
मेरी मिट्टी कहां है?
कब तक और कब तक
एक बैसाखी के सहारे
चढ़ती रहूं
झूलती रहूं
शाल वृक्ष के तनों पर
झेलती रहूं
आंधी, पानी और धूप?</poem>