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18:23, 13 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ममता कालिया
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|संग्रह=
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<poem>उंगलियों पर गिन रही है दिन
खांटी घरेलू औरत
सोनू और मुनिया पूछते हैं
‘क्या मिलाती रहती हो मां
उंगलियों की पोरों पर’
वह कहती है ‘तुम्हारे मामा की शादी का दिन
विचार रही हूं
कब की है घुड़चढ़ी कब की बरात!’
घर का मुखिया यही सवाल करता है
तो आरक्त हो जाते हैं उसके गाल
कैसे बताए कि इस बार
ठीक नहीं बैठ रहा
माहवारी का हिसाब!
</poem>
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