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00:25, 14 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुशीला टाकभौरे
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<poem>मैं रह सकती हूं
समुद्र की तलहटी में
जल वनस्पति की तरह
अपार जल के भार को
वहन करते
थल-नभ के सभी सुखों से दूर
अंधेरों से प्रकाश में
कभी न आ पाने के दुख से बोझिल
हिंसक जन्तुओं के बीच
साहचर्य जताते
गलने-सड़ने की बात से निरपेक्ष
मैं सब कुछ सह सकती हूं
मगर यह नहीं कि बरबस
मुझे किसी छोटे गमले में
लगाया जाये
या किसी नर्सरी में
मात्र अर्थोपार्जन के लिए
एक नमूने के रूप में रखा जाये!</poem>
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