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00:26, 14 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुशीला टाकभौरे
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|संग्रह=
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<poem>तुममें और मुझमें यही फर्क है
तुम डरते हो
अपनी क्रीज अपनी इमेज खराब हो जाने से
और मैं तत्पर हूं
हरिश्चंद्र की पत्नी की तरह
अपनी आधी साड़ी फाड़ कर
दे देने के लिए
हरिश्चंद्र की पत्नी की तरह
चाहे मरघट का टैक्स हो
या कफन
बिके हुए पुत्र के
कफन के दावेदारो
तुम बात करते हो
नियम और कानून की
पर मेरा प्रश्न है नियम और कानून के
औचित्य पर
तुम बात को
अपनी नज़र से देखते हो
और मैं
सबकी नज़र बनना चाहती हूं...!</poem>
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