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द्रौपदी / सुमन केशरी

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<poem>क्या परिचय दूं मैं अपना
द्रौपदी... पांचाली... कृष्णा... याज्ञसेनी...
सभी संज्ञाएं वस्तुतः विश्लेषण हैं
या सम्बन्ध-सूचक
कभी गौर किया है तुमने
मेरा कोई नाम नहीं
द्रोणाचार्य के अपमान का बदला चुकाने को
पिता को चाहिए था एक
योद्धा
और धृष्टद्युम्न के पीछे
यज्ञाग्नि से औचक ही निःसृत मैं
खुद ही प्रयोजन बनती रही
आजन्म
सुई की नोक बराबर भूमि न पानेवालों के
औरस
अब तक मुझ पर उंगली उठाते नहीं थकते कि
लाखों की मृत्यु का कारण मैं रही
और भी कई कहानियां
बुन ली हैं उन्होंने
महज़ इसलिए कि मैं कभी रोई नहीं...
गिड़गिड़ाई नहीं
न मां के सम्मुख जब उन्होंने मुझे बांट दिया
पांच बेटों में
और न
कुरूसभा में
जहां पांच-पांच पतियों के बावजूद
मैं अकेली पड़ गई
इतिहास गवाह है कि मैंने केवल
कुछ प्रश्न उठाए
कुछ शंकाएं और जिज्ञासाएं
और तुमने मुझे नाम ही से वंचित कर दिया!</poem>
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