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बच्चे, तुम अपने घर जाओ / गगन गिल

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<poem>बच्चे, तुम अपने घर जाओ

घर कहीं नहीं है?
तो वापस कोख़ में जाओ

मां की कोख नहीं है?
पिता के वीर्य में जाओ

पिता कहीं नहीं है?
तो मां के गर्भ में जाओ

गर्भ का अण्डा बंजर?
तो मुन्ना झर जाओ तुम
उसकी माहवारी में

जाती है जैसे उसकी
इच्छा संडास के नीचे
वैसे तुम भी जाओ
लड़की को मुक्त करो अब
बच्चे, तुम अपने घर जाओ।</poem>
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