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17:50, 15 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गगन गिल
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|संग्रह=
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<poem>एक अलस्सुबह वह उसे छूती है
किसी अनजान ग्रह पर
होश के सातवें आसमान पर
तृष्णा की अजीबोगरीब रोशनी में
वह उसे छूती है
भारी बादल की तरह
ठहरी हवा की तरह
पवित्र अग्नि की तरह
वह उसे इस तरह छूती है
जैसे वह छठे दिन का खुदा हो
जिसे उसमें से गुजरकर
उसे नष्ट कर देना हो
फिर से बनाना हो
एक अलस्सुबह वह छूती है
उस मायावी को
जल की तरह
और चुन लेती है अपने लिए
मृत्यु
एक मछली की!</poem>
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