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<poem>शहर में कोई हिन्दू मरा
मैं इसके खिलाफ हूं
कोई मुस्लिम
दंगों का शिकार हुआ
मैं उसके खिलाफ हूं
किसी सिक्ख के धर्म का अपमान हुआ
मैं उसके भी खिलाफ हूं
किसी ईसाई को अपने ही देश में
विदेशी कह कर मारा जाए
मैं इसके भी खिलाफ हूं

मैं लडूंगी
हर धर्म हर सम्प्रदाय
में होने वाली हर ज्यादती के खि़लाफ
परन्तु
क्यों नहीं आता कोई हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
मेरे साथ
उस अन्याय के विरुद्ध
जो कभी खैरलांजी
झज्जर दुलीना और गोहाना
का कहर बन
बरस जाता है
मेरे समाज पर
क्या कोई देगा साथ
मेरे हकों की लड़ाई में
उनके लिए जो
बार-बार अनेकों बार
बहलाए गए फुसलाए गये
और धकेल दिए गये हाशिए पर
धर्म और जाति के दोज़ख़ में
कभी दलित सिक्ख और दलित ईसाई बनाकर...?</poem>
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