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13:12, 19 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिरुद्ध उमट
|संग्रह=
}}
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<poem>
अभी आएँगे वे
ज़रा पान की दूकान पर गए हैं
राह देखती खाली कुर्सी
कितनी चीज़ें हैं
इस घर में
आत्माएँ उनकी रोती उस क्षण को
कह गया जो आता हूँ अभी...
प्यास
आँगन में एक कुआँ
जिसका जल
हर प्यास में ऊपर उठ आता
एक दिन
घर का दरवाज़ा खुला देख
बाहर को गया
तो बरसों लौटा नहीं
एक-एक कर सभी
उतरे कुएँ में
बनाने भीतर ही दरवाज़ा
किसी की भी आवाज़
नहीं सुनाई दी फिर कभी
एक दिन भूला-भटका जल
लौट आया
और कुएँ में लगा झाँकने
पीछे से दीवारों ने उसकी गर्दन
धर-दबोची
सभी घरो के दरवाज़े बंद थे...
</poem>
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