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शोर की बाहों में गीतों का जिस्म पिघलते देखा है / ज़ाहिद अबरोल
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शोर की बाहों में गीतों का जिस्म पिघलते देखा है
क्यूं ख़ामोश रहूं फूलों को आग में जलते देखा है
द्विजेन्द्र 'द्विज'
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