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शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु, मुझे तुमने,
कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।
जो मिला तुममें , भला क्या
भिन्नता का स्वाद जाने,
जो नियम में बंध बँध गया,
वह क्या भला अपवाद जाने!
जो रहा समकक्ष, करुणा की मिली कब छांह छाँह उसको,कुछ गिरावट चाहिए, उद्धार होने के लिए।लिए!
जो अजन्मा हैहैं, उन्हें इसइंद्रधनुषी इन्द्रधनुषी विश्व से संबंध सम्बन्ध क्या!जो न पीड़ा झेल पाये पाएँ स्वयं,दूसरों के लिए उनको द्वंद्व द्वन्द्व क्या!
एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार शृंगार सकता है,मोह कुछ तो चाहिए, साकार होने के लिए!
क्या निदाघ निदाध नहीं प्रलासी प्रवासी बादलों सेखींच सावन -धार लाता है!
निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे
क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!
है हैं अभाव जहाँ, वहीं है हैं भाव दुर्लभ -कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए!
वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो,मधुर झंकार लगती और भी!विरह के मधुवन सरीखे दीखतेहैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी! साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान!चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए!(23.9.1974)
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