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21:48, 26 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
पुराना जब नये को तोलता है
तो उसका अपना अंदर डोलता है
पुराने को नया जब तोलता है
ज़बान-ओ-ज़िहन-ओ-दिल सब खोलता है
कोई आवाज़ ऊंची हो तो समझो
मुक़द्दर का ‘सिकन्दर’ बोलता है
यक़ीं में हो मसीहाई की ताक़त
मसीहा तब कहीं दर खोलता है
ख़ुदा का शुक्र है “ज़ाहिद” सफ़ों में
कोई है जो अलग से बोलता है
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