गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मासूम परिन्दों के टूटे हुए पर देखो / ज़ाहिद अबरोल
4 bytes added
,
22:31, 26 अक्टूबर 2015
उनका भी जिगर देखो, और अज़्म-ए-सफ़र देखो
पŸाों
पाँवों
की ज़बां
समझंे
समझें
, शाख़ों की फुग़ां
समझंे
समझें
इस फ़न के हैं हम माहिर, अपना यह हुनर देखो
द्विजेन्द्र 'द्विज'
405
edits