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किसी का स्वप्न / पारुल पुखराज

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पीठ पर लिए कब से चल रहा कोई
अथक
किसी का स्वप्न

समापन बिंदु किए अदेखा निरंतर
गतिमान

पृथ्वी के अंतिम छोर तक
सुर साधे
शिथिल पाँव
निश्चित है उसकी अनूठी यात्रा

पीठ पर जिसकी किसी अन्य के स्वप्न का भार

हवा में
धुंआ है
तपन
सूखा एक पत्ता

कमजोर स्वर कोई
लहरा रहा
साथ
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