Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीषा कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनीषा कुलश्रेष्ठ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>एक औरत के
यकीनों का क्या है?
टूटते रहते हैं हर रोज
हाथ से गिरे प्यालों की तरह
बटोर कर फैंक देती है वह
उसे शायद नहीं पता
नहीं करती है वह सामना
बाहर की दुनिया का
एक मर्द के लिये
जो कि बहुत आसान नहीं
बहुत बचाता है
बचाना चाहता है
वह औरत के मासूम यकीनों को
लेकिन कई बार
मुमकिन नहीं होता
मर्दों की दुनिया में
मर्द होने की प्रक्रिया में

कई बार लौटा कर
लाया भी है वह
सही सलामत उन कांच से यकीनों को
लेकिन
घर की देहरी तक
लौटते उसके पांव
यूं थक कर लडख़डाते हैं कि
छन्न - से
टूट कर गिर ही पडते हैं
औरत के यकीन</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits