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15:13, 2 नवम्बर 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>हवा आओगी
बाहों में ?
अव सिमटोगी
प्राणों में ?
गीत स्वर में
सध जाओगे ?
मीत मरू से
लग पाओगे ?
छाँव सूरज को
चूमेगी ?
नाव झंझा से
खेलोगी ?
धरती नभ को भी छू लोगी, जकड़ोगी ?
परती श्रम को भी सोखोगी ?
नहीं, !
नहीं. !!
नहीं. !!!
</poem>