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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
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<poem>मयखाना तेरी आँखें, मय जाम में ढालूं क्या,
हैं होंठ तेरे अमृत, मैं प्यास बुझा लूं क्या

अब नींद भी आँखों से, ये पूछ के आती है,
आने से ज़रा पहले, कुछ ख़्वाब सजा लूं क्या

तस्वीर तेरी माना, बोली है न बोलेगी,
मैं उससे भी पूछूं हूँ, सीने से लगा लूं क्या

बाहर के अँधेरे से, भीतर के उजाले तक,
मैं देह का पर्दा हूँ, मैं खुद को हटा लूं क्या</poem>
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