Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर बेचैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>गगन में जब अपना सितारा न देखा,
तो जीने का कोई सहारा न देखा

नज़र है, मगर वो नज़र क्या कि जिसने,
खुद अपनी नज़र का नज़ारा न देखा

भले वो डुबाए, उबारे कि हमने,
भंवर देख ली तो किनारा न देखा

वो बस नाम का आईना है की जिसने,
कभी हुस्न को खुद संवारा न देखा

तुम्हे जब से देखा, तुम्हे देखते हैं,
कभी मुड़ के खुद को दुबारा न देखा

सभी नफरतों की दवा है मुहब्बत,
कि इससे अलग कोई चारा न देखा

मैं बादल में रोया, हँसा बिजलियों में,
किसी ने ये मेरा इशारा ने देखा

'कुँअर' हम उसी के हुए जा रहे हैं,
जिसे हमने अब तक पुकारा न देखा </poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits