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15:27, 10 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सत्य मोहन वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>भोग कर अवमाननाओं की जलन
पड़ गए धुंधले सभी जीवन रतन
हैं बहुत आतुर यहाँ सिंगार को
हर डगर महके अभावों के सुमन
संत की सौगंध से रहना परे
टाक में हैं तक्षकों के नागफन
रौशनी भरपूर दे कर जायेंगे
छा रहे जो वायदों के स्याह घन
स्वर्ग में निश्चित तुम्हें ले जायेंगे
सर झुका के सुनते रहो इनके वचन
हर इबारत इस तरह बिगड़ी हुई
जिस तरह जम्हूरियत के आचरण.
</poem>
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