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बाज़ार / मुइसेर येनिया
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19:52, 5 दिसम्बर 2015
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<poem>
आह क्या जगह है
जहाँ ईश्वर
पके फल की तरह
ज़मीन पर गिरा
और बिखर गया !
चलो चलते हैं
रेशम के कपड़े की तरह
अपनी त्वचा लपेटते हुए
हमारे दुखों से घिरे हुए बाज़ार से बाहर ।
</poem>
अनिल जनविजय
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