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एक बूँद / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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13:35, 15 अगस्त 2006
अभी और संपादन बाकी था
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी<br>
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,<br>
आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों
बढ़ी
कढ़ी
?<br><br>
देव मेरे भाग्य में क्या है
बढ़ा
बदा
,<br>
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?<br>
या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,<br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त