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05:14, 13 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा चमोली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>लचीलेपन की हद तक खिंचकर
वस्तु, खरीददार
याचक, उपहार
फ्री आफॅर ,बाजार
दान-पुण्य के बीच
झूलते आदमी में
कितना आदमी बचा रह पाएगा ?
</poem>