1,096 bytes added,
09:52, 13 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>रात-रात भर
कत्ल हुए हैं शहर-पनाहों पर
हत्यारों की भीड़ लगी है
फिर दरगाहों पर
बन्दनवारें महलसरा में
घर-घर कुचले फूल
आँख झुकाए सूरज बैठे
हुई भोर से भूल
लौटे टूटी चौखट लेकर
घर चौराहों पर
लंबा-चौड़ा एक कारवाँ
नकली चेहरों का
लाशघरों से खबर आई है
मौसम पहरों का
गुदे गुलामी के गुदने हैं
सबकी बाँहों पर
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader