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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>अंधे कौव्वे
थके कबूतर
लौट आये बूढ़े जहाज पर

चारों ओर
बाढ़ है -जल है
द्वीप नहीं है
मैले सागर
मोती वाले सीप नहीं हैं

धुँधले साये
चोरों के डर
लौट आये बूढ़े जहाज पर

छेदों वाली नाव पुरानी
फटे जाल हैं
लंबी यात्राओं से
नाविक सब निढाल हैं

प्रेत-महल के
सारे अनुचर
लौट आये बूढ़े जहाज पर
</poem>
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