1,254 bytes added,
11:53, 13 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>पीली सरसों
धूप-छाँव है खुली गदोरी में
अँजुरी-भर आकाश
हवाएँ नीली खुशबू की
मेंहदी करे हिसाब
न जाने कनखी कब चूकी
हल्दी-उबटन धरा
साँस की बंद कटोरी में
भोली गौरइया के घर में
चौकी सपनों की
भरे-भरे आँगन में
फिरतीं यादें अपनों की
रखती आँख सँभाल
रूप को देह-तिजोरी में
ड्योढ़ी पर धर चौक
हथेली हुई गुलाबी दिन
घुंघरू बजे रात चौखट पर
बातें हैं कमसिन
पकड़े गये उजास
चाँद की नाज़ुक चोरी में
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader