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गुंबजों के खेल में / कुमार रवींद्र
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11:59, 13 दिसम्बर 2015
<poem>आधे हुए पौने हुए
सूरज चढ़े मीनार पर
:::
बौने हुए
अंधी सरायों में
फिर गुंबजों के खेल में
:::
हैरान मृगछौने हुए
लादे हवाओं के किले
टूटे घरौंदों की गली से
:::
धूप के गौने हुए
</poem>
Sharda suman
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