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11:21, 19 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}
<poem>मुझे मालूम है
अफ़्रीका के किसी मुल्क में
कोई शहर है
नाम है टिम्बकटू
वहां के लोग
मुझसे कुछ अलग दिखते हैं
उनकी भाषा अलग है
जो मैं नहीं समझता
वे भी मेरी भाषा नहीं समझते
इन बाशिंदों के लिये
टिम्बकटू अपना है
मेरे लिये पराया है
और इसीलिये मैं वहां होना चाहता हूं.
लेकिन हो सकता है
मैं वहां होऊं
सड़क पर टहलता होऊं
लोग मुझे देखते रहे
दिलचस्पी के साथ
चाय की दुकान पर
जब मैं पहुंचूं
बेंच पर मेरे लिये वे जगह बनावें
मुझसे कुछ कहना चाहें
लेकिन मेरी भाषा उन्हें न आवे
वे सिर्फ़ मुस्कराकर रह जायं
और मैं भी मुस्करा दूं
और वो पराया शहर
टिम्बकटू
अचानक अपना सा लगने लगे...
इसी डर से
मैं टिम्बकटू नहीं गया.
</poem>
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