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|रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<poem>मैंने सुना था
बयाबां की सरहद पर
शुरू होती है बस्ती
जहां मिलते हैं
अपने भी.

मैंने बस्ती देखी
और लेौट चला बयाबां की ओर.
</poem>
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