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|रचनाकार=शिव कुमार झा 'टिल्लू'
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<poem>सुरूज अपने सूतल अहाँ जगै छी किये
चान टुकटुक तकै अछि कनै छी किये
राति निशबद सूतल जीव वासमे पैसल
मात्र जागै निशाचर अभ्यासमे बैसल
ठोहिक तानक संग नोरकेँ सनै छी किये
चान टुकटुक तकै अछि कनै छी किये
कौआ खोंता पड़ल निन्न भंग ने करू
व्रतमे आजी निनायल छथि तंग ने करू
भोरे जे मँगबै देब एखन बजै छी किये
चान टुकटुक तकै अछि कनै छी किये
बुच्ची बुधगरि दुलारि देब लवनचूस चारि
भैया डाँटथिन्ह बौआकेँ त' देबनि देहे ससारि
करेज सटिक' सुतू अलग पलरै छी किये
चान टुकटुक तकै अछि कनै छी किये
एकटा अहीं सनक मुनिया रैन जागल रहै
ओकरा कनिते देख परी ल' क' भागल रहै
अहाँ निचैन भ' क' सुतू ड'रे अलगै छी किये
चान टुकटुक तकै अछि कनै छी किये
बौआ अचके सूतलि माय तरेगन गनथि
मातृअर्पणक टीस कोना पुरुख जानथि
आब सुतू हे माते शून्यकेँ गनै छी किये
चान टुकटुक तकै अछि कनै छी किये</poem>
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