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चश्मे-तर / राग तेलंग

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<poem>एक दृष्टि में
एक अपेक्षा की गंध पाकर
हुआ आकृष्ट

जाना
वह थी एक लालसा
निर्झर
एक बूंद की
झर जाने को बेताब
धुआं-धुंआ हो जाने तक

यह
मैं भी था
जाना
जब हुआ
तर-ब-तर ।

</poem>
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