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20:23, 20 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>बाजारों में बिकती है रोटी
छोटे बड़े तवों पर सिकती है रोटी
खूब तो चलता है
ये कारोबार
तो कम यों पड़ जाती है
बार-बार ।</poem>
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