|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी / शैलजा पाठक
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भैया दूसरी हथेली बढ़ा देता
अब दूसरी में पेड़ा
भैया देर तक मुस्कराता...ार घर के आंगन में भागता
मीठा हो जाता
गप-गप खा जाता लड्डू-पेड़ा
भैया झूम जाता
बताशे में पानी डाल कर
तुम ही खिला सकती थी गोलगपागोलगप्पा
जादूगरनी...तुम ही थी
सूना आंगन...हवा में हिलती कुर्सी