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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>कभी कुछ राज की बातें कभी एतराज की बातें,
हमारे यार की बातें अलग अंदाज की बातें.

भले वो कैद में है पर अभी हिम्मत नहीं हारा,
करे वो आसमाँ की तो कभी परवाज की बातें.

मुहब्बत की जो बातें हैं महज़ बातें नहीं होतीं,
वो होतीं गीत-गजलों की सुरों की साज की बातें.

अगर हम राज की बातें बता देते किसी को भी,
नहीं फिर राज रहती हैं कभी भी राज की बातें.

जरूरत ही नहीं लफ्जों की होती है मुहब्बत में,
दो दिल आपस में कर लेते बिना आवाज की बातें.
</poem>
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