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19:11, 24 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>सिर्फ नहीं लफ्ज़ "मुहब्बत",समझो ना.
क्या है मेरे दिल की हालत, समझो ना.
तुमको अपना माना अपना दर्द कहा,
इसको मेरी कोई शिकायत समझो ना.
तुमने जो देखा है वो भी झूठ नहीं,
पर उसके पीछे की हक़ीक़त, समझो ना.
मुझको पता है उसकी नीयत कैसी है,
उसने किया जो,उसकी शराफत समझो ना.
तुमने कुछ चाहा था पर कुछ और हुआ,
इसको तुम उसकी ही चाहत, समझो ना.
माँ के पैरों के नीचे ही जन्नत है,
पर उस जन्नत को तुम जन्नत, समझो ना.
</poem>