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बरसात न दोगे / कमलेश द्विवेदी

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<poem>क्या हाथों में हाथ न दोगे?
जीने के जज़्बात न दोगे?

मात अगर अबकी भी खा लूं,
आगे से फिर मात न दोगे?

जिसमे हम दोनों ही भीगें,
वो बरसाती रात न दोगे?

यादों के संग ही रह लूं मैं,
इतना भी संग-साथ न दोगे?

दिल न दिया है दर्द ही दे दो,
कोई भी सौगात न दोगे?

अच्छा बस ये वादा कर लो-
आँखों को बरसात न दोगे.
</poem>
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