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19:48, 24 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>देख तुमको कही एक प्यारी ग़ज़ल.
छू रही है दिलों को हमारी ग़ज़ल.
लोग तारीफ हमसे हमारी करें,
जबकि सच है कि है ये तुम्हारी ग़ज़ल.
सोते-जगते तुम्हीं याद आते रहे,
ऐसे तुमने सजायी-सँवारी ग़ज़ल.
इक ग़ज़ल पर ग़ज़ल हमने कह दी ज़रा,
सबको लगने लगी सबसे न्यारी ग़ज़ल.
शुक्रिया उस ख़ुदा का करें किस तरह,
जिसने धरती पर ऐसी उतारी ग़ज़ल.
</poem>