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पूछ रहा है / कमलेश द्विवेदी

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<poem>इक बेवफ़ा से कोई पता पूछ रहा है.
किस ओर है ये राहे-वफ़ा वफ़ा पूछ रहा है.

अच्छा न इक मरीज़ हुआ जिससे कभी भी,
उस डॉक्टर से अपनी दवा पूछ रहा है.

पूछा न उसने कुछ भी कभी पास रहा जब,
अब दूर हूँ तो हाल मेरा पूछ रहा है.

क़ातिल के क़त्ल करने का देखें तो सलीका,
मक़्तूल से वो उसकी रज़ा पूछ रहा है.

जिस बात को छुपाना अभी चाह रहा हूँ,
वो बस उसी के पीछे पड़ा पूछ रहा है.

इक बार भी न पूछा कि माँ कैसे मरी पर,
बक्से में उसके क्या-क्या मिला पूछ रहा है.
</poem>
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