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{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>वो चाहे तो सब मिल जाये एक इशारा काफ़ी है.
दुनिया से क्यों माँगूँ कुछ मैं, उसका सहारा काफ़ी है.

बेटे तेरे बँगले में हैं रहने की सब सुविधायें,
फिर भी मेरी ख़ातिर मेरा घर-चौबारा काफ़ी है.

किस्मत में लिक्खा है बचना तो शोलों से डरना क्या,
और अगर है जलना तो फिर एक शरारा काफ़ी है.

मन के साथ न जा पाये तो बद्रीनाथ भी जाना,
मन भी साथ रहे तो घर का ठाकुरद्वारा काफ़ी है.

भाई ये अम्मा-बाबू हैं घर-खेती-दूकान नहीं,
पहले ही जो बाँट चुके हो वो बँटवारा काफ़ी है.
</poem>
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