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04:02, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>खुशियाँ मिलतीं ग़म मिलते हैं.
सबसे हँसकर हम मिलते हैं.
अच्छे तो हैं इस दुनिया में,
पर ढूँढो तो कम मिलते हैं.
बीते दिन की अलमारी में,
यादों के अलबम मिलते हैं.
हमराही मिलते हैं कितने,
पर कितने हमदम मिलते हैं.
उससे मिलकर लगता ऐसा,
जैसे ख़ुद से हम मिलते हैं.
</poem>