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04:18, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>अच्छा तब तक जोश रहेगा.
जब तक हमको होश रहेगा.
पीने की आदत है जिसकी,
वो हरदम मदहोश रहेगा.
थोड़ा-थोड़ा जोड़ेंगे तो,
कब तक खाली कोश रहेगा.
कोई माफी मांग अगर ले,
क्या उस पर आक्रोश रहेगा.
सोयेगा तो अब भी पीछे,
कछुये से खरगोश रहेगा.
तू हर इक मंजिल पा लेगा,
यदि साहस-संतोष रहेगा.
झूठ तभी तक चिल्लायेगा,
सच जब तक खामोश रहेगा.
</poem>