{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem> '''कुछ नहीं होने की तरह'''
उतर जाती सारी थकान
परोसतीं गर्म- गर्म रोटियाँ
और चुटकी भर नमक
इस नमक के साथ
मनुहार की रोटी जरूर परोसतीं
अड़ोस- पड़ोस की इतनी खबरें
होतीं उनके पास कि
अखबार को उठाकर
रखना ही पड़ता एक तरफ
लौटना ही पड़ता देश- दुनिया से
अपने एक कमरे के धर में
जहाँ से उठकर बच्चे
निकलते हैं जीवन की तरफ।
</poem>