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09:12, 2 जनवरी 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
''' विज्ञापन – एक '''
विज्ञापन में पढ़ा
पैसा अब और ज़्यादा बोलेगा
और रातभर नींद नहीं आयी
पैसा जब बोलता है तो
कुँआरी लडक़ी के
सपने आत्महत्या कर लेते हैं
पैसा जब बोलता है तो
भाई-भाई का क़त्ल कर देता है
पैसा जब बोलता है
तो हिन्दुस्तान-पाकिस्तान बन जाता है
पैसा जब बोलता है तो
इराक युद्ध होता है
पैसा जब बोलता है तब
मनुष्य चुप हो जाता है
देश-मुहल्ले-गली-घर
सब बदल जाते हैं बाज़ार में।
</poem>